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SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक 2025: भारत की मुखर कूटनीति और क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता
क्या भारत ने एक महत्वपूर्ण वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ ‘दोहरे मापदंड’ को खारिज कर दिया?
जून 2025 में चीन के किंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक ने क्षेत्रीय कूटनीति में एक नया अध्याय लिखा। इस बैठक में भारत का रुख न केवल दृढ़ था, बल्कि यह देश की "आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता" की नीति और "रणनीतिक स्वायत्तता" के सिद्धांत को भी दर्शाता है।
भारत के रक्षा मंत्री, राजनाथ सिंह ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। इस ऐतिहासिक निर्णय के पीछे का मुख्य कारण था 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने में बयान की विफलता और आतंकवाद की चिंताओं को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करना।
यह कूटनीतिक रुख, ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुखर सैन्य अभियान के साथ मिलकर, यह साबित करता है कि भारत अब बहुपक्षीय मंचों पर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता करने को तैयार नहीं है। इस लेख में हम इस बैठक के भू-राजनीतिक निहितार्थ, भारत के सैद्धांतिक रुख और उसके बाद शुरू हुए सैन्य अभियान पर गहराई से चर्चा करेंगे।
1. SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक 2025: एक भू-राजनीतिक अवलोकन
SCO, जिसकी स्थापना मूल रूप से चीन और रूस ने एशिया में अमेरिकी प्रभाव को संतुलित करने के लिए की थी, एक प्रमुख क्षेत्रीय समूह बन गया है। इसका मूलभूत जनादेश आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद से लड़ना है, साथ ही आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। 2025 की बैठक में उठे विवादों को समझने के लिए यह जनादेश बेहद महत्वपूर्ण है।
इस बार की 22वीं वार्षिक बैठक, ईरान-इज़राइल संकट और भारत-पाकिस्तान तनावों के बीच हुई। चीन ने, जो 2025 के लिए SCO का अध्यक्ष था, किंगदाओ में इस दो दिवसीय सत्र की मेज़बानी की। चीनी रक्षा मंत्री डोंग जून ने अपने भाषण में "एकतरफावाद" और "आधिपत्यवादी प्रथाओं" की आलोचना की, जो चीन की अमेरिका विरोधी विदेश नीति के अनुरूप थी।
हालाँकि, बैठक के घोषित उद्देश्य (आतंकवाद से लड़ना) और इसके परिणामों में एक बड़ा विरोधाभास दिखा। संयुक्त बयान में आतंकवाद का कोई उल्लेख नहीं था, क्योंकि एक "विशेष सदस्य राज्य" ने इस पर आपत्ति जताई थी। यह SCO के अंदर के तनाव को उजागर करता है, जहाँ सदस्यों के द्विपक्षीय हित सामूहिक जनादेश पर भारी पड़ते हैं।
2. भारत का सैद्धांतिक रुख: एक कूटनीतिक मोड़
SCO बैठक में भारत की भागीदारी को संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से उसके दृढ़ इनकार ने परिभाषित किया। इस निर्णय का सीधा संबंध पहलगाम आतंकी हमले से था।
पहलगाम आतंकी हमला: एक विस्तृत विवरण
22 अप्रैल, 2025 को, जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में पहलगाम के पास बैसरन घाटी में एक जघन्य आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 26 भारतीय पर्यटक मारे गए, जिनमें से ज़्यादातर हिंदू थे। हमलावरों ने कथित तौर पर गोलीबारी करने से पहले पीड़ितों से उनकी धार्मिक पहचान पूछी, जो इसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास बनाता है। हमले की जिम्मेदारी शुरुआत में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के प्रॉक्सी, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली थी। भारत ने इस घटना के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया।
संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर से भारत का इनकार: कारणों का विश्लेषण
राजनाथ सिंह का संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने का प्राथमिक कारण पहलगाम हमले का बयान में उल्लेख न होना था। भारत के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि भारत ने "आतंकवाद पर चिंताओं" को शामिल करने की मांग की थी, लेकिन यह एक "विशेष देश" (संकेत में पाकिस्तान, और उसका समर्थन करने वाला चीन) को मंज़ूर नहीं था।
राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि बयान "पाकिस्तान के आख्यान के अनुकूल" था, क्योंकि इसमें बलूचिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों का ज़िक्र हो सकता था, लेकिन पहलगाम हमले का नहीं। राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में "दोहरे मापदंडों" के लिए कोई जगह न होने पर ज़ोर दिया और आतंकवाद के अपराधियों, आयोजकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया।
रणनीतिक स्वायत्तता का सिद्धांत
भारत का यह कदम उसकी "रणनीतिक स्वायत्तता" के सिद्धांत का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह सिद्धांत भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम बनाता है, भले ही वह किसी बहुपक्षीय मंच पर हो। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह संगठनात्मक सद्भाव के लिए अपने मूल राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों, विशेषकर "शून्य-सहिष्णुता नीति," से समझौता नहीं करेगा। यह कदम अन्य देशों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है कि वे भी अपने राष्ट्रीय हितों को अधिक दृढ़ता से मुखर करें।
तालिका 1: SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक 2025 तक की प्रमुख घटनाएँ
तिथि | घटना | मुख्य विवरण |
22 अप्रैल, 2025 | पहलगाम आतंकी हमला | 26 भारतीय हिंदू पर्यटक मारे गए; धार्मिक रूप से लक्षित; पाकिस्तान समर्थित LeT प्रॉक्सी, TRF पर आरोप। |
7 मई, 2025 (और बाद के दिन) | ऑपरेशन सिंदूर का शुभारंभ | नियंत्रण रेखा (LoC) और पाकिस्तान के भीतर आतंकी बुनियादी ढांचे को खत्म करने के लिए भारत की सटीक सैन्य प्रतिक्रिया। |
26-27 जून, 2025 | SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक, किंगदाओ, चीन | पहलगाम हमले को छोड़ने के कारण संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से भारत का इनकार; बैठक के दौरान महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठकें। |
3. ऑपरेशन सिंदूर: भारत का मुखर आतंकवाद विरोधी प्रतिमान
SCO बैठक में भारत का कूटनीतिक रुख एक महत्वपूर्ण सैन्य अभियान, ऑपरेशन सिंदूर द्वारा समर्थित था। यह ऑपरेशन पहलगाम हमले के जवाब में शुरू किया गया था और इसने भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति में एक बड़ा बदलाव दिखाया।
उत्पत्ति और रणनीतिक उद्देश्य
ऑपरेशन सिंदूर को 7 मई, 2025 को पहलगाम आतंकी हमले की सीधी प्रतिक्रिया के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य "नियंत्रण रेखा और पाकिस्तान के भीतर आतंकी बुनियादी ढांचे को खत्म करना" था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रतिक्रिया को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, यहाँ तक कि विदेश दौरे पर रहते हुए भी। उनका संदेश स्पष्ट था: "आतंकवाद के केंद्र अब सुरक्षित नहीं हैं, हम उन्हें निशाना बनाने में संकोच नहीं करेंगे।"
यह बयान भारत की पारंपरिक रक्षात्मक मुद्रा से एक अधिक सक्रिय, निवारक-उन्मुख रणनीति की ओर बदलाव को दर्शाता है।
बहु-डोमेन निष्पादन: भूमि, वायु और समुद्री अभियानों की एक व्यापक समीक्षा
ऑपरेशन सिंदूर एक "कैलिब्रेटेड, त्रि-सेवा प्रतिक्रिया" थी, जिसे भूमि, वायु और समुद्री डोमेन में निष्पादित किया गया:
भारतीय वायु सेना (IAF): इसने पाकिस्तान भर में आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जिससे नूर खान और रहीमयार खान जैसे महत्वपूर्ण एयरबेस को निशाना बनाया गया।
भारतीय सेना: इन्होंने संयुक्त तलाशी अभियान चलाए और घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम किया, जिससे प्रमुख आतंकवादी कमांडरों को बेअसर किया गया।
भारतीय नौसेना: अपने कैरियर बैटल ग्रुप (CBG) को तैनात करके समुद्री प्रभुत्व का दावा किया और मकरान तट से हवाई घुसपैठ को रोका।
सीमा सुरक्षा बल (BSF): जम्मू और कश्मीर के सांबा जिले में एक बड़ी घुसपैठ के प्रयास को विफल किया।
यह बहु-डोमेन दृष्टिकोण भारत की परिपक्व और एकीकृत रक्षा क्षमताओं को दर्शाता है।
प्रभाव और परिणाम: इसकी प्रभावशीलता का आकलन
ऑपरेशन सिंदूर को "भारत की सैन्य और रणनीतिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन" माना गया। इसने सफलतापूर्वक "आतंकवाद के प्रति भारत की शून्य-सहिष्णुता नीति को दृढ़ता से लागू किया" और क्षेत्रीय प्रभुत्व की पुष्टि की। यह ऑपरेशन भारत की उच्च-सटीक, समन्वित सैन्य कार्रवाई की क्षमता का प्रदर्शन था।
इसके जवाब में, पाकिस्तान ने ड्रोन हमलों की एक श्रृंखला शुरू की, लेकिन भारत की "व्यापक और बहुस्तरीय वायु रक्षा वास्तुकला" ने उन्हें सफलतापूर्वक रोक दिया। पाकिस्तान ने यह भी दावा किया कि भारतीय हमलों ने नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाया, जिससे राजनयिक संकट और गहरा हो गया।
नेतृत्व और रणनीतिक संचार की भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को इस ऑपरेशन को व्यवस्थित करने में निर्णायक बताया गया। भारत ने पाकिस्तान के "गलत सूचना से भरे आक्रामक अभियान" का तथ्यों और पारदर्शिता से मुकाबला किया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने प्रेस ब्रीफिंग की, जिससे भारत की कार्य योजना पारदर्शी रूप से सामने आई। यह दर्शाता है कि आधुनिक संघर्षों में सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ प्रभावी रणनीतिक संचार भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
4. द्विपक्षीय जुड़ाव: रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करना
जबकि बहुपक्षीय बयान एक गतिरोध का सामना कर रहा था, भारत ने SCO बैठक के दौरान महत्वपूर्ण द्विपक्षीय जुड़ावों को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया, जिससे उसकी बहुआयामी विदेश नीति दृष्टिकोण का प्रदर्शन हुआ।
भारत-रूस रक्षा सहयोग: सैन्य हार्डवेयर, उन्नयन और आतंकवाद विरोधी एकजुटता
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 26 जून, 2025 को किंगदाओ में रूसी रक्षा मंत्री एंड्रे बेलौसोव के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की। उनकी चर्चाएँ व्यापक थीं, जिसमें वर्तमान भू-राजनीतिक स्थितियाँ, सीमा पार आतंकवाद और लंबे समय से चले आ रहे भारत-रूस रक्षा सहयोग शामिल थे। विशेष रूप से, रूसी रक्षा मंत्री ने 22 अप्रैल को हुए भयानक पहलगाम आतंकी कृत्य पर भारत के साथ मज़बूत "एकजुटता" व्यक्त की। रूस की यह सीधी और स्पष्ट निंदा SCO की संयुक्त बयान में हमले का उल्लेख करने में सामूहिक अक्षमता के बिल्कुल विपरीत है।
प्रमुख चर्चाओं में S-400 वायु रक्षा प्रणालियों की आपूर्ति, Su-30 MKI लड़ाकू जेट के उन्नयन, और "त्वरित समय-सीमा" के भीतर अन्य महत्वपूर्ण सैन्य हार्डवेयर की खरीद शामिल थी। यह दिखाता है कि भू-राजनीतिक बदलावों के बावजूद रूस भारत का एक अनिवार्य रक्षा भागीदार बना हुआ है।
भारत-चीन द्विपक्षीय संवाद: विश्वास घाटे और सीमा प्रबंधन
राजनयिक तनावों के बावजूद, राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष, एडमिरल डोंग जून के साथ भी द्विपक्षीय बैठक की। इस बैठक में, सिंह ने सीधे "पूर्वी लद्दाख में 2020 के गतिरोध के बाद उत्पन्न हुए प्रचलित विश्वास घाटे" को उठाया। उन्होंने 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। दोनों मंत्रियों ने तनाव कम करने और सीमा प्रबंधन पर चर्चा जारी रखने पर सहमति व्यक्त की। सिंह ने डोंग जून को पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में भी जानकारी दी, यह दर्शाता है कि भारत संवाद के लिए तैयार है, भले ही मतभेद हों।
मध्य एशियाई और अन्य SCO सदस्य राज्यों के साथ जुड़ाव
रूस और चीन के अलावा, राजनाथ सिंह ने बेलारूस, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान के अपने समकक्षों के साथ भी बैठकें कीं। इन चर्चाओं का मुख्य केंद्र सैन्य तकनीकी सहयोग, प्रशिक्षण और भारत की बढ़ती रक्षा आत्मनिर्भरता थी। उन्होंने इन देशों को भी पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी दी, जिससे आतंकवाद का मुकाबला करने में क्षेत्रीय तालमेल की आवश्यकता पर बल दिया गया।
SCO बैठक में भारत की कार्रवाइयाँ बहु-वेक्टर कूटनीति का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। एक ओर, भारत ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करके एक मजबूत सैद्धांतिक रुख अपनाया। दूसरी ओर, उसने अपने रणनीतिक सहयोगी रूस और रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन दोनों के साथ महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठकों में भाग लिया। यह दृष्टिकोण भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने में मदद करता है, जबकि महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करता है।
तालिका 2: SCO 2025 में भारत के द्विपक्षीय जुड़ाव
समकक्ष राष्ट्र | प्रमुख चर्चाएँ | रणनीतिक परिणाम/महत्व |
रूस | वर्तमान भू-राजनीतिक स्थितियाँ, सीमा पार आतंकवाद, भारत-रूस रक्षा सहयोग (S-400 प्रणाली, Su-30 MKI उन्नयन), पहलगाम आतंकी हमले पर एकजुटता। | लंबे समय से चले आ रहे रक्षा संबंधों को मजबूत करता है और उन्नत सैन्य हार्डवेयर की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है। |
चीन | 2020 पूर्वी लद्दाख गतिरोध के बाद विश्वास घाटा, LAC पर शांति, डी-एस्केलेशन के लिए संरचित रोडमैप, सीमा प्रबंधन। | चल रही सीमा चुनौतियों को स्वीकार करता है और तनावों के बावजूद संवाद और डी-एस्केलेशन के प्रति प्रतिबद्धता दिखाता है। |
बेलारूस, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान | सैन्य-तकनीकी सहयोग, प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता। | मध्य एशियाई भागीदारों के साथ रक्षा सहयोग का विस्तार करता है और भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देता है। |
5. व्यापक भू-राजनीतिक निहितार्थ और भविष्य की दिशा
2025 में SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक, विशेष रूप से भारत की मुखर कार्रवाइयां, क्षेत्रीय सुरक्षा और वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखती हैं।
SCO के भीतर बदलती शक्ति गतिशीलता
किंगदाओ में SCO बैठक ने संगठन की आंतरिक शक्ति गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव को उजागर किया। चीन ने तेजी से बागडोर संभाली है, जबकि रूस यूक्रेन में व्यस्त है और अंतरराष्ट्रीय अलगाव का सामना कर रहा है। चीन का यह "बढ़ता प्रभुत्व" SCO में भारत के हितों पर सवाल उठाता है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री द्वारा "चीनी समर्थन" पर जोर देना चीन-पाकिस्तान धुरी को और मज़बूत करता है, जिससे भारत से संबंधित मुद्दों पर आम सहमति और जटिल हो सकती है।
SCO की आतंकवाद जैसे मूल जनादेश पर भी सहमत होने में विफलता, उसकी विश्वसनीयता और सामूहिक सुरक्षा कार्रवाई की क्षमता को कमज़ोर करती है। यह बताता है कि SCO अब एक वास्तविक सुरक्षा गुट के बजाय द्विपक्षीय जुड़ाव और पश्चिमी विरोधी बयानबाजी के लिए एक मंच बन रहा है। भारत के लिए, एक सामूहिक सुरक्षा तंत्र के रूप में SCO की प्रासंगिकता कम हो रही है, जिससे सदस्य देशों को सुरक्षा सहयोग के लिए द्विपक्षीय या छोटे समूहों पर अधिक भरोसा करना पड़ रहा है।
सामूहिक आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए चुनौतियाँ
एक संयुक्त बयान को अपनाने में विफलता ने दिखाया कि "वास्तविक सहयोग के लिए आतंकवाद को संबोधित करने के लिए साझा परिभाषाओं और मानकों की आवश्यकता है।" यह घटना दर्शाती है कि जब सदस्य राज्य आतंकवाद के लिए अलग-अलग मानदंड लागू करते हैं, तो सामूहिक कार्रवाई असंभव हो जाती है। यह इस महत्वपूर्ण सबक को रेखांकित करता है कि आतंकवाद जैसे साझा खतरों से निपटने के लिए "साझा सिद्धांतों और आपसी सम्मान की आवश्यकता है, ऐसे मूल्य जिन पर समझौता नहीं किया जा सकता है।"
भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन जैसे गहरे द्विपक्षीय विवाद, विशेष रूप से आम सहमति पर काम करने वाले बहुपक्षीय संगठनों की प्रभावशीलता को पंगु बना सकते हैं।
क्षेत्रीय सुरक्षा वास्तुकला में भारत की बढ़ती भूमिका
SCO 2025 बैठक में भारत का दृढ़ रुख "भारत के राजनयिक इतिहास में एक निर्णायक क्षण" है। यह आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए देश की अटूट प्रतिबद्धता और रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति उसके अटूट पालन का एक शक्तिशाली प्रदर्शन था। आगे बढ़ते हुए, भारत "SCO जुड़ाव के लिए अधिक चयनात्मक दृष्टिकोण" अपना सकता है, जहां वह ठोस लाभ प्राप्त कर सकता है। यह "सक्रिय रक्षा कूटनीति" वैश्विक मंच पर भारत की "महत्वपूर्ण भूमिका" को दर्शाती है।
आतंकवाद पर SCO की आम सहमति को चुनौती देने, रूस के साथ रक्षा जरूरतों को पूरा करने और चीन के साथ जटिल सीमा मुद्दों का प्रबंधन करने की भारत की क्षमता रणनीतिक स्वायत्तता के एक अत्यधिक परिष्कृत अनुप्रयोग को प्रदर्शित करती है। भारत अब किसी एक गुट के साथ संरेखित नहीं हो रहा है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र रूप से विविध साझेदारी बना रहा है, जिससे वह एक महत्वपूर्ण और स्वतंत्र वैश्विक अभिनेता के रूप में स्थापित हो रहा है।
भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन संबंधों पर SCO 2025 के बाद का दृष्टिकोण
भारत-पाकिस्तान: पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर ने तनाव बढ़ा दिया, जिससे दोनों परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच दशकों में सबसे गंभीर सैन्य टकराव हुआ। SCO में राजनयिक गतिरोध ने गहरे बैठे अविश्वास और सीमा पार आतंकवाद से संबंधित मुद्दों पर समझौता करने की भारत की अनिच्छा को उजागर किया।
भारत-चीन: दशकों पुराने सीमा विवादों और चीन के पाकिस्तान के साथ मजबूत गठबंधन के बावजूद, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के मुद्दों पर द्विपक्षीय संवाद जारी है। भारत का उद्देश्य मतभेदों का प्रबंधन करना, संचार बढ़ाना और आपसी विश्वास बनाना है।
6. निष्कर्ष और रणनीतिक सिफारिशें
2025 में किंगदाओ में SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक ने आतंकवाद पर भारत के मुखर और सैद्धांतिक रुख को स्पष्ट रूप से उजागर किया। संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार, राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों को बहुपक्षीय आम सहमति पर प्राथमिकता देने के भारत के संकल्प को दर्शाता है। ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सक्रिय, बहु-डोमेन आतंकवाद विरोधी क्षमताओं का प्रदर्शन किया। साथ ही, भारत ने SCO मंच का उपयोग महत्वपूर्ण द्विपक्षीय जुड़ावों के लिए किया, विशेष रूप से रूस और चीन के साथ। यह सब SCO के भीतर बहुपक्षीय आकांक्षाओं और द्विपक्षीय हितों के जटिल अंतर्संबंध को प्रकट करता है।
इस विश्लेषण के आधार पर, निम्नलिखित रणनीतिक सिफारिशें प्रस्तुत की जाती हैं:
SCO के साथ भारत के जुड़ाव के लिए: भारत को SCO के साथ एक अत्यधिक चयनात्मक जुड़ाव रणनीति जारी रखनी चाहिए। उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जहां ठोस लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं, जैसे खुफिया जानकारी साझा करना, और उन प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करना चाहिए जो उसके मूल हितों का खंडन करते हैं।
वैश्विक आतंकवाद विरोधी सहयोग के लिए: अंतरराष्ट्रीय मंचों को आतंकवाद की सार्वभौमिक रूप से सहमत परिभाषाओं और जवाबदेही के लिए मज़बूत तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है, जो राजनीतिक सुविधा से परे हों।
क्षेत्रीय स्थिरता के लिए (भारत-चीन): सीमा मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और तनाव को रोकने के लिए भारत और चीन के बीच निरंतर और संरचित द्विपक्षीय संवाद आवश्यक हैं।
भारत की रक्षा तैयारी के लिए: बहु-डोमेन रक्षा क्षमताओं (वायु रक्षा, साइबर युद्ध, नौसेना प्रक्षेपण) में निरंतर निवेश महत्वपूर्ण है।
रणनीतिक स्वायत्तता के लिए: भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के दीर्घकालिक मूल्य को मज़बूत करना महत्वपूर्ण है, जो उसे किसी एक गुट से बंधे बिना विविध साझेदारी बनाने की अनुमति देता है।
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